http://ayurvedbrahm.blogspot.in/ Ayurvedbrahm : The Science of living beings.: September 2016

Wednesday, 28 September 2016

Sharad : October heat - 1



शरद् –ऋतुः -

            आश्विनकार्तिकौ मासौ मिलित्वा शरदृतुः वर्तते। आधुनिकयोः सप्तेम्बर-अक्तूबरमासयोः शरदृतुरायाति। शरदि वातावरणे सूर्योष्मा संतापयति दिने, चन्द्रांशवश्च शीतीकुर्वन्ति रात्रौ।  शरदः प्राक् वर्षाकालः समभवत्। तस्मिन् वर्षर्तौ जलं धान्यं चापि निसर्गतः एव अम्लविपाकात्मकं भवति। तस्माच्च वर्षायां पित्तस्य सञ्चयः प्रारभते। शरदि तत् वर्षासञ्चितं पित्तं सूर्योष्मणा पुनः वर्धते प्रकुप्यति च।  तस्मात् अस्मिन् काले पित्तव्याधयः नरान् तापयन्ति। रक्तदुष्टिश्चापि भवति। कण्डूयुताः त्वग्विकाराश्चापि वर्धन्ते। संक्षेपेण अम्लपित्तं, पित्तज्वरः, शीतपित्तं, कोठः, मुखपाकः,  शिरःशूलः  तथा च विचर्चिकादयः कुष्ठप्रकाराः अस्मिन्काले वर्धमानाः दरीदृश्यन्ते। सम्प्रति शरद् ऋतुः प्रारब्धः अतः कथं एतैः विकारैः पित्तप्रकोपाच्च मुक्तिं लभाम इति श्वः कथयिष्ये।

Śarad ṛtu (Care during October heat)

            Two months in terms of Indian panchang i.e. āświn and kārtika are considered as śarad tu. We can compare with equivalent September and October. In this period sunrays give much trouble in day time by heating this universe extremely and moon gives some relief by cooling the universe in night. In previous rainy season due to sore water and grains, there is accumulation of extra pitta inside the body. Prior accumulated pitta vitiates due to sun rays in this śarad tu. Therefore pitta disorders and skin disorders increase in this period due to disturbed pitta and rakta. Acidity, fever, rashes, headache, giddiness, eczemas are generally observed in this period.  Currently śarad tu has been started thus how we could get relief from these disorders, will be published tomorrow.

शरद् ऋतु।

            आश्विन एवं कार्तिक ऋतुओं को मिलाकर शरद ऋतु होती है। सप्टेंबर एवं अक्टूबर मे अधुना हम शरद् मानते है। इस कालमें दिन मे सूर्यकिरणों से मानो धरती तापती रहती है एवं रात्रिमें चन्द्रमा के शीतल किरणोंसे धरती को राहत मिलती है। स्वभावसेही इस समयमें पित्त विकार बढ जाते हैं। रक्त खराब उत्पन्न होने लगता है। खुजली एवं स्राव वाले त्वचा के विकार भी पर्याप्त मात्रामें बढने लगते हैं।  संक्षेप मे अम्लपित्त, शीतपित्त, फुन्सियाँ , मुह के छाले, सिरदर्द, तथा एग्झीमा जैसे त्वचाविकार भी प्रायः देखने को मिलते हैं। संप्रति काल में शरद् ऋतु ही चल रहा है। तो आइए देखे कि पित्त को नियन्त्रित करके  कैसे शरीर की रक्षा पित्तके रोगेसे की जाए, जिसपर कल प्रकाश डाला जाएगा.


Tuesday, 27 September 2016

Vyayama : Rules and Regulations.



व्यायामः।
                व्यायामो नाम शरीरायासजनकं कर्म। शरीरायासं नाम श्रमजनन्यः  शरीरचेष्टाः  याः शरीरस्य बलं स्थैर्यं च वर्धयन्ति ताः सर्वाः  व्यायामेति संज्ञया अवगन्तव्याः। आधुनिके काले यस्मिन् प्रत्येकस्मै प्रातरुत्थानाद् आरभ्य रात्रिनिद्रापर्यन्तं उदरपरिपालनार्थं बहूनि कार्याणि विद्यन्ते, व्यायामार्थं समयः अल्पः एव प्राप्तुं शक्यः। भवतु अल्पः एव किन्तु प्रतिदिनं न्यूनातिन्यूनं पञ्चनिमिषस्य समयः  अपि पर्याप्तः स तु  परमव्यग्राय प्रधानमन्त्रिमहोदयाय अपि लभते एव। अतः अन्यैः समयाभावस्य कारणं न कथञ्चिदपि दातव्यं व्यायामाकरणाय।
                सन्ति च अनेकप्रकाराः व्यायामविशेषाः ये च कर्तुं सरलाः अल्पकालाभिधेयाश्च। योगोक्तानि आसनानि तेष्वपि सूर्यनमस्कारः सर्वेषां कृते योग्यः प्रतिभाति। एते च व्यायामविशेषाः कथं अभ्यसनीयाः  इत्यस्योत्तरं बहुषु योगासनपुस्तकेषु सरलतया द्रष्टुं शक्यं, आन्तरजालेपि सहजमेव प्राप्यते। प्रतिदिनं स्ववयोनुसृत्य स्वबलं समीक्ष्य उपलब्धसमयं च वीक्ष्य पञ्च, दश, विंशतिः, पञ्चाशद्, शताधिका वा सूर्यनमस्काराः कर्तुमुचिताः।  
                एते च व्यायामप्रकाराः प्रातः काले एव प्राधान्येन करणीयाः विद्यन्ते। प्रातः निद्रातः उत्थाय मलविसर्जनं कृत्वा, दन्तधावनं कृत्वा, शरीरं अभ्यङ्गविधिना तैलाक्तं कृत्वा व्यायामः कर्तव्यः सर्वैः। मलविसर्जनसमये स्वमलपरीक्षणमपि कर्तव्यं । किमर्थं? अजीर्णज्ञानार्थम्। यदि पुरीषभेदः, द्रवमलप्रवृत्तिः, उदरगौरवम्, दुष्टः उद्गारः एतेषु कानिचन लक्षणानि दृश्यन्ते तर्हि तत् अजीर्णसूचकम्। अजीर्णावस्थायां व्यायामः न करणीयः। अतः  व्यायामात् प्राक् एतानि लक्षणानि अवश्यमेव परीक्षितव्यानि।  येषां कृते प्रातः समयोपलब्धिः नास्त्येव तेषां कृते सायं व्यायामसमयः उचितः। तैः प्रातर्भोजनपश्चाद् षट् सप्त वा घण्टात्मकं कालं त्यक्‌त्वा  यदा उदरलाघवं सञ्जायते तदा एव व्यायामः कर्तव्यः।
                नित्यव्यायामाभ्यासेन शरीरे लाघवता आयाति। कर्मसामर्थ्यं च वर्धते । जाठराग्निः  बुभुक्षा पचनक्षमता च वर्धते। अतिरिक्तमेदसः क्षयो भवति। शरीरं दृग्गोचरपुष्टमांसपेशीयुतं विभक्तं घनं च भवति।   शरीरं दुःखसहिष्णुः व्याधिसहिष्णुः व्याधिप्रतिकारक्षमं भवति। शरीरे धातूनां स्थैर्यम् उपलक्ष्यते। प्रतिदिनचर्यायाः आहारविहाराभ्यां ये दोषाः मलाः शरीरे जन्यन्ते तेषां क्षयः अपि व्यायामाद् प्रतिदिनं भवितुमर्हति।  
                व्यायामः दिनचर्यायाः अतिमहत्त्वयुतो भागः अस्ति। न्यूनातिन्यूनं हेमन्तनाम्नि ऋतौ, शिशिरर्तौ, वसन्तर्तौ च विशेषेण प्रभूतः व्यायामः कर्तव्यः एव ।  हेमन्तशिशिरवसन्ताः संवत्सरे मार्गशीर्ष-पौष-माघ-फाल्गुन-चैत्र-वैशाखाख्येषु मासेषु यदि वा Nov-Dec-Jane-Feb-March-April इत्येतेषु आङ्ग्लमासेषु विद्यते।  शेषेषु मासेषु मन्दव्यायामः तु आचरणीयः एव।
                अत्युत्साहेन अतिव्यायामः कथंचिदपि न कर्तव्यः। तेन बलारोग्यहानिरेव भविष्यति। अतः सर्वैः प्रतिदिनम् ऋतुं कालं बलं प्रकृतिं वयः जीर्णाजीर्णतां च अभिसमीक्ष्य उचितः व्यायामः अवश्यमेव विधेयः इति शम्।
                 
Vyāyāma ( Exercise)
    
      Vyāyam or exercise means that type of body activities which are desirable for generating body fatigue, body stability and strength of the body. In today’s fast and fully engaged life style, there may be very short time for performing vyāyāma. But at least time of 5 minutes should be kept free for doing vyāyāma and I think it is possible to most engaged person also. So no one should claim for shortness of time for avoiding vyāyāma.
     
     There are so many types of bodily activities i.e. vyāyama which are very easy to perform to everybody within a short period of time. Yogāsana, Sūryanamaskāra and other so many types of vyāyāma are desirable here. How should these be performed, is answerable in the books of yogāsana and also on internet search engines. Illustrated charts containing sūryanamaskāra are easily available in markets specially in book stores. Thus one should perform at least 5, 10, 20, 50, 100 or even more sūryanamaskārāḥ visualizing own body strength, available time and age.
     
     These exercises are to be performed essentially in morning hours only. One should awake early in the morning preferably in brāhma muhūrta, should go to toilet, brush the teeth, should have little oil massage i.e. abhyaṇga and then perform one of the above said vyāyāmāḥ. While defecation, one should observe the stool for its consistency whether it is loose, semisolid or sticking to toilet pan. As inconsistent stool, heaviness in abdomen, sore belching are some signs or symptoms showing state of indigestion in which vyāyāma should be avoided. So before performing exercise one should examine all these entities. For those who do not have enough time in morning, evening period is advisable rather than avoiding it completely. In such situations one should exercise after 6 to 7 hours of morning diet. Remember we have only two timings for meal first in the morning and second one just after evening. So, there is no such concept of so called breakfast-lunch-tea time snacks- dinner etc in āyurveda.
     
     Daily habit of vyāyāma gives lightness to body, increased working capacity, good appetite and digestion power, decrease in excessive fat, muscular look, immunity, capacity to bear miseries and stability. It also enables to destruct doṣāḥ and malāḥ which are increased while performing and eating in accordance with daily regimen.

     Vyāyāma is important part of daily regimen. At least from hemanta to vasanta seasons all should perform it thoroughly. In terms of English months it will come from November to April. Being healthy season one should perform full exercise in this period. In rest period one should exercise some what less.
      
     One should not do vyāyāma more than its capacity. It will hamper strength and health only. So vyāyāma should be performed daily after examining season, time, own body strength, own constituent, age and state of complete digestion or indigestion.
         
      Concept of constituent will be posted latter in this blog. 



व्यायाम :  विधि एवं नियम


                शरीर को श्रम दिलाने वाली, बल एवं स्थैर्य बढाने वाली क्रियाएँ व्यायाम कहलाती हैं। आधुनिक कालमें जहाँ हर व्यक्तिको प्रातः उठने से रात्रिमें निद्रातक अपने पेट पालने मे ही मग्न रहना क्रमप्राप्त है, व्यायाम के लिए समय निकाल पाना दुष्प्राप्य हो रहा है। किन्तु जितना मिल सके कम ही सही,  व्यायाम के लिए समय अवश्य निकालना चाहिए। व्यस्त से व्यस्त प्रधानमन्त्री जैसे व्यक्ति भी पाँच मिनट का समय तो निकाल हि पाते है। औरो को समय नही है यह कारण नही देना चाहिए।
                ऐसे अनेक प्रकार के व्यायाम हैं जिन्हे अत्यंत सरलता से एवं कम समय में किया जा सकता है। योगशास्त्रमें वर्णित आसन विशेष तथा सूर्यनमस्कार यह सभी लोगोंके लिए उपयुक्त लगता है। इन योगासनोंकी एवं सूर्यनमस्कार की विधि बतलाने वाले अनेक किताब उपलब्ध हैं या फिर आन्तरजाल तो है ही। अतः प्रतिदिन स्वयं का वय, शरीर बल एवं उपलब्ध समय देखकर सबको पाँच, दस, बीस, पचास, सौ या उससे भी अधिक सूर्यनमस्कार करने चाहिए।
                ये सभी व्यायाम प्रधानतः प्रातःकाल में ही करने चाहिए।  सुबह निद्रा से जग कर, मल विसर्जनोपरान्त दाँत साफ करके, अभ्यंगविधिसे शरीर को तैल लगाकर व्यायाम करना चाहिए। मल विसर्जन के समय मल का परीक्षण भी अजीर्ण के ज्ञान के लिए करना चाहिए। द्रवमल की प्रवृत्ति, फैलता हुआ मल, पेट में भारीपन, खट्टी या विचित्र उद्गार ये कुछ अजीर्ण सूचक लक्षण हैं। अजीर्ण होने पर व्यायाम नही करना चाहिए। जिन महानुभावोंको प्रातः समय उपलब्धही नही हो सकता उनको चाहिए कि वे दोपहर के भोजन के छह सात घंटे बाद सायं काल में पेट हल्का होने पर व्यायाम करें।
                प्रतिदिन व्यायाम करने से शरीर में हल्कापन आता है। कार्य करने की शरीर की क्षमता में वृद्धि होती है। जठराग्नि, भूख एव पचन की क्षमता बढती है। शरीर का अतिरिक्त मेद भी कम होता है। शरीर की माँस पेशियाँ विभक्त दिखती हैं। दुःख एवं व्याधियोंको सहने की क्षमता एवं व्याधिप्रतिकार क्षमता में बढोत्तरी होती है। शरीर के धातुओंमे एक स्थैर्य सा आ जाता है। प्रतिदिन के विकृत आहार एवं विहार के कारण बढे हुएँ दोष भी व्यायाम से कम होते हैं।
                व्यायाम यह दिनचर्या का अतिमहत्वपूर्ण भाग है। कम से कम हेमन्त, शिशिर एवं वसन्त ऋतुओं में तो व्यायाम अवश्य ही करना चाहिए।  मार्गशीर्ष से लेकर वैशाख मास तक याने नवम्बर से लेकर अप्रैल तक यह समय है। इसको छोडकर अन्य महिनों मेभी  अल्प मात्रामें व्यायाम करते ही रहना चाहिए।
                अति उत्साह से बहोत जादा मात्रा में व्यायाम कभी नही करे। इससे बल एवं आरोग्य की हानि ही होगी। अतः सबको चाहिए कि वे प्रतिदिन ऋतु, बल, प्रकृति , वय एवं पूर्व दिन के आहार के पचन या अपचन की अवस्था को देखकर अवश्यही उचित व्यायाम करें।
 

Monday, 26 September 2016

Brahm and brahma muhurta


ब्रह्म। ब्राह्ममुहूर्तः।
श्री परब्रह्मणे नमः।
ब्रह्म नाम ज्ञानम्। ब्रह्म इति परमात्मस्वरूपो भगवान्। तं ज्ञानरूपिणं भगवन्तं नमस्कृत्य आयुर्वेदम् अनुसृत्य किञ्चिद् ब्रह्म आरभे। तदर्थमिदं आयुर्वेदब्रह्म । ज्ञानार्थं अध्ययनार्थं वा योग्यो मुहूर्तः ब्राह्ममुहूर्तः। एकस्यां निशि पञ्चदश मुहूर्ताः आयान्ति। एकैको मुहूर्तः अष्टचत्वारिंशन्निमिषात्मकः विद्यते। तेषु पञ्चदशसु रात्रिमुहूर्तेषु उपान्त्यः चतुर्दशः वा मुहूर्तः ब्राह्ममुहूर्तः। तस्मिन् ब्राह्मे मुहूर्ते उत्तिष्ठेद् इति आयुर्वेदादेशः। अतः रात्रिकाले एव अन्तिमं अष्टचत्वारिंशन्निमिषात्मकं मुहूर्तं हित्वा उपान्त्ये अष्टचत्वारिंशन्निमिशात्मके काले सर्वैः उत्थानं कर्तव्यमेव। यदि सूर्योदयः षड् वादनसमये भवति, तर्हि षड्वादनात् पूर्वे ये अष्टचत्वारिंशन्निमिषाः (॰५: १२ तः ॰६: ॰॰) तान् वर्जयित्वा पश्चिमे अष्टचत्वारिंशन्निमिमात्मके काले नाम ॰४: २४ तः ॰५:१२ इत्यस्मिन् काले निद्रां त्यक्त्वा शय्यां दूरीकृत्य उत्तिष्ठेद् इति भावः। एष एव ब्राह्ममुहूर्तः। अतः ब्राह्मे मुहूर्ते उत्तिष्ठेत्। किमर्थं  ? इति चेत् आरोग्यार्थं मङ्गलार्थं अध्ययनार्थं समृद्ध्यर्थं ऐश्वर्यप्राप्त्यर्थं मोक्षार्थं चेति उत्तराणि नैकानि सन्ति अन्यान्यपि । इह आरोग्यं अधिकृत्य एव किञ्चिद् ब्रूमः। आयुर्वेदब्रह्माधिकारात्। वातदोषः प्रत्यन्हि द्वे काले बलवान् भवति, दिनान्ते निशान्ते च। दिने चत्वारः यामाः ( 3 hrs period) सन्ति रात्रावपि। दिनान्ते नाम दिवसस्य अन्तिमे यामे, निशान्ते नाम रात्रेः अन्तिमे यामे।  एकैकः यामः प्रायेण चतुर्मुहूर्तात्मकः(3.75) विद्यते। अतः नियमेन ब्राह्ममुहूर्तः निशान्ते आयाति। ब्राह्मे मुहूर्ते वातदोषः बलवान् भवति। मलानुलोमनं वातकार्यं । अतः मलत्यागार्थम् अनुकूलः कालः एष विद्यते। अस्मिन् गते सति वातदोषः किञ्चिद् बलहीनः भवति। तस्य मलानुलोमनकार्यमपि बाधते। असम्यक् मलत्यागे अग्निदुष्टिः भवति। तस्माच्च सर्वरोगोत्पत्तिः भवितुमर्हति। अभ्यङ्गः वातहारकः अस्ति। अतः वातस्य उल्बणावस्थायामेव कर्तव्यः। व्यायामार्थं शरीरलाघवता आवश्यकी चलगुणश्च अपेक्षितः। वातस्य लाघवात् चलत्वाच्च व्यायामः अपि अस्मिन्नेव वातकाले कर्तव्यः। प्राणो हि नाम वायुविशेषः तस्य आयामः प्राणायामः अपि अस्मिन्नेव काले अनुकूलः। एकाग्रमनसा ध्यानम् ईशचिन्तनम् अपि अस्मिन्नेव आरब्धं चेदेव वरम्। मनश्च
अस्पृष्टबहुविषयं अस्मिन् काले स्थिरीभवति अतः अध्ययनार्थमपि अनुकूलः एष ब्राह्ममुहूर्तारब्धः प्रातःकालः। सम्यक् मलानुलोमनं, अभ्यङ्गः, व्यायामः, प्राणायामः, ध्यानम्, अध्ययनम् एते सर्वे एव परमारोग्यकराः भावाः सन्ति। अतः आरोग्यप्राप्यर्थं सर्वैः एव ब्राह्मे मुहूर्ते उत्थानं कर्तव्यमिति शम्।

Brahma and brāhma muhūrta.
Brahma is knowledge. Brahma (and not brahmā) is supreme power of this universe in terms of knowledge. Thus ayurvedbrahm” is the blog dedicated to society for giving some knowledge about ayurveda as an ideal life style. In day time there is a specific period which is very much useful for gaining knowledge and study and that time period is termed as brāhma muhūrta. In night time there are 15 parts termed as muhūrta, each containing 48 minutes. Brāhma is second last muhūrta of night i.e. second last 48 minute part. As as example if sun rise is on 6:00 o’clock, then leaving last 48 minutes that is from 05:12 to 06:00, second last 48 minutes i.e. from 04: 24 to 05:12 are termed as brāhma muhūrta. One should awake in this period (brāhma muhūrta) every day. Why should one wake up in this period ? answer is for health, prosperity, study and even for emancipation. Here we are discussing about health, as the subject of this blog i.e. knowledge of health through āyurveda. Vāta doṣa is one of the three controlling powers of body of living beings. Among the main functions of vāta dośa, anulomana i.e. allowing fecal matter to evacuate the bowel is important one. The urge of feces is generated and controlled by vāta doṣa. Vāta doṣa is most active in two periods in a day called as vāta kala. These are last yāma of day and night. Yāma is period of 3 hours . Each yāma contains 3.75 muhūrtāḥ (muhūrtāḥ is plural of muhūrta).  So last yāma of night includes brāhma muhūrta, in which vāta is more predominant. So if one wakes up in this period then only vāta doṣa allows its complete evacuation of feces, disturbance in which vitiates agni i.e. digestion which in turn causes all the diseases.  Abhyaṅga which is broadly termed as massage, pacifies vāta doṣa and should be performed in brāhma muūrta only. Vyāyam (exercise) requires lightness and capacity to have full access to all movements. Both being controlled by vāta doṣa, one should exercise during early morning i.e. vāta kāla. Mind remains very stable and quite not being introduced to its subjects during this period. So this period is also ideal for meditation, prāṇāyāma and study. Health is dependent on all these things right from evacuation of feces to prāṇāyāma. So one must awake early in the morning in brāmha muhūrta i.e. second last 48 minutes of night.   

ब्रह्म एवं ब्राह्म मुहूर्त
ब्रह्म अर्थात् ज्ञान। सर्वज्ञानरूपी ब्रह्म ही इस विश्व की सर्वोच्च शक्ति है। आयुर्वेदब्रह्म यह ब्लॉग आयुर्वेद शास्त्र के माध्यम से एक आदर्श जीवनशैली कैसे बनाए इसका मार्गदर्शन कराता है। ज्ञान पाने के लिए अध्ययन करने का जो दिन का समय है उसे ब्राह्म मुहूर्त कहते है। इस ब्लॉग की प्रथम चर्चा इस ब्राह्म मुहूर्त को समर्पित है। रात्रि के उपान्त्य मुहूर्त को ब्राह्म मुहूर्त ‌कहते है। उपान्त्य याने अखिरी छोडकर उससे पहला। एक रात्रि मे 15 मुहूर्त हुआ करते हैं। एक एक मुहूर्त 48 मिनट का होता है। उदाहरण के लिए यदि 6 बजे सूर्योदय होता है, तब अखिरी 48 मिनट याने 05: 12 से 06: 00 तक का समय छोडकर उससे पहले वाले जो 48 मिनट है याने 04: 24 से 05:12 तक इस काल को ब्राह्म मुहूर्त कहते है। अतः मनुष्य को चाहिए कि वो ब्राह्म मुहूर्त मे निद्रा त्यागकर शय्या से उठे। ब्राह्म मुहूर्त मे जागृत होने से कई लाभ मिलते हैं। जैसे आरोग्य, संपन्नता, ऐश्वर्य , ज्ञान एवं मोक्ष भी। प्रकृत ब्लॉग का अधिकरण ‘आरोग्य’ होने से इसी के विषयमे किञ्चित् प्रकाश डालते है। वात, पित्त एवं कफ ये तीन शक्तियाँ मनुष्य शरीरके सभी क्रियाकलाप नियन्त्रित करती हैं। इनको दोष कहा जाता है। वात दोष दिन मे दो समयोंमे अधिक बलवान होता है। एक तो दिवसके अन्तिम याम मे और दूसरा रात्रिके अन्तिम याम मे। 3 घण्टेका एक याम होता है। एक याम मे 3.75 मुहूर्त होते हैं। सो रात्रि के अन्तिम याममे जिसमे ब्राह्ममुहूर्त भी संमिलित है, वात दोष का आधिक्य रहता है। मलत्याग के लिए जो वेग आवश्यक होता है उसे नियन्त्रित करना वात दोष का कार्य है। अतः ब्राह्म मुहूर्त मे उठने से वात के बलवान् होने के कारण मलत्याग पूर्ण रूप से हो पाता है। इसके ठीक विपरीत यह समय बीत जाने पर कफ दोष का समय प्रारम्भ होता है जिसमे पूर्णरूप से यह क्रिया नही हो पाती, जिस के कारण अग्नि की दुष्टि हो जाने से मानो आप समस्त व्याधियोंको आमन्त्रण ही देते है। अभ्यङ्ग जिसे आधुनिक काल में लोग मसाज नाम से जानते हैं, के लिए भी यह समय अधिक उपयुक्त है। कारण यह है कि सर्वोच्च बलवान समय की अवस्था मे वात का दमन किया तो वह फिर दिनभर  प्रकुपित होने की संभावना नही के बराबर रहती है। अभ्यङ्ग वात दोष को नियत्न्रित करने की एक अच्छी विधि है। व्यायाम करने के लिए शरीर मे हल्कापन एवं चञ्चलता चाहिए, ये दोनो वातदोष के अधिकारमे आते हैं, अतः ब्राह्म मुहूर्त से लेकर जो प्रातः काल है उसीमे मलत्यागजनित एवं वातजनित हल्कापन एवं चञ्चलता होने से व्यायाम उचित है। प्राण वायू को नियन्त्रित करके जो प्राणायाम किए जाते हैं वे भी इसी काल मे करने योग्य होते हैं। स्नान, ध्यान एवं अध्ययनके लिए यही काल योग्य हैं। क्यूंकी मन की स्थिरता इनमे आवश्यक होती हैं, और निद्राकालमे विषयों से दूर रहने के कारण यह समय मन को स्थिर करता है। सारतः मनुष्यको चाहिए कि वह रात्रिके उपान्त्य मुहूर्त में अर्थात् ब्राह्मकाल मे जागृत हो एवं आरोग्य से लाभान्वित हो।