ब्रह्म। ब्राह्ममुहूर्तः।
श्री परब्रह्मणे नमः।
ब्रह्म नाम
ज्ञानम्। ब्रह्म इति परमात्मस्वरूपो भगवान्। तं ज्ञानरूपिणं भगवन्तं नमस्कृत्य आयुर्वेदम्
अनुसृत्य किञ्चिद् ब्रह्म आरभे। तदर्थमिदं आयुर्वेदब्रह्म । ज्ञानार्थं अध्ययनार्थं
वा योग्यो मुहूर्तः ब्राह्ममुहूर्तः। एकस्यां निशि पञ्चदश मुहूर्ताः आयान्ति। एकैको
मुहूर्तः अष्टचत्वारिंशन्निमिषात्मकः विद्यते। तेषु पञ्चदशसु रात्रिमुहूर्तेषु उपान्त्यः
चतुर्दशः वा मुहूर्तः ब्राह्ममुहूर्तः। तस्मिन् ब्राह्मे मुहूर्ते उत्तिष्ठेद् इति
आयुर्वेदादेशः। अतः रात्रिकाले एव अन्तिमं अष्टचत्वारिंशन्निमिषात्मकं मुहूर्तं हित्वा
उपान्त्ये अष्टचत्वारिंशन्निमिशात्मके काले सर्वैः उत्थानं कर्तव्यमेव। यदि सूर्योदयः
षड् वादनसमये भवति, तर्हि षड्वादनात् पूर्वे ये अष्टचत्वारिंशन्निमिषाः (॰५: १२ तः ॰६: ॰॰) तान् वर्जयित्वा पश्चिमे अष्टचत्वारिंशन्निमिमात्मके काले नाम ॰४: २४ तः ॰५:१२ इत्यस्मिन् काले निद्रां त्यक्त्वा शय्यां दूरीकृत्य उत्तिष्ठेद्
इति भावः। एष एव ब्राह्ममुहूर्तः। अतः ब्राह्मे मुहूर्ते उत्तिष्ठेत्। किमर्थं ? इति चेत् आरोग्यार्थं मङ्गलार्थं अध्ययनार्थं
समृद्ध्यर्थं ऐश्वर्यप्राप्त्यर्थं मोक्षार्थं चेति उत्तराणि नैकानि सन्ति अन्यान्यपि
। इह आरोग्यं अधिकृत्य एव किञ्चिद् ब्रूमः। आयुर्वेदब्रह्माधिकारात्। वातदोषः प्रत्यन्हि
द्वे काले बलवान् भवति, दिनान्ते निशान्ते च। दिने चत्वारः यामाः ( 3 hrs period) सन्ति
रात्रावपि। दिनान्ते नाम दिवसस्य अन्तिमे यामे, निशान्ते नाम रात्रेः अन्तिमे यामे। एकैकः यामः प्रायेण चतुर्मुहूर्तात्मकः(3.75) विद्यते।
अतः नियमेन ब्राह्ममुहूर्तः निशान्ते आयाति। ब्राह्मे मुहूर्ते वातदोषः बलवान् भवति।
मलानुलोमनं वातकार्यं । अतः मलत्यागार्थम् अनुकूलः कालः एष विद्यते। अस्मिन् गते सति
वातदोषः किञ्चिद् बलहीनः भवति। तस्य मलानुलोमनकार्यमपि बाधते। असम्यक् मलत्यागे अग्निदुष्टिः
भवति। तस्माच्च सर्वरोगोत्पत्तिः भवितुमर्हति। अभ्यङ्गः वातहारकः अस्ति। अतः वातस्य
उल्बणावस्थायामेव कर्तव्यः। व्यायामार्थं शरीरलाघवता आवश्यकी चलगुणश्च अपेक्षितः। वातस्य
लाघवात् चलत्वाच्च व्यायामः अपि अस्मिन्नेव वातकाले कर्तव्यः। प्राणो हि नाम वायुविशेषः
तस्य आयामः प्राणायामः अपि अस्मिन्नेव काले अनुकूलः। एकाग्रमनसा ध्यानम् ईशचिन्तनम्
अपि अस्मिन्नेव आरब्धं चेदेव वरम्। मनश्च
अस्पृष्टबहुविषयं अस्मिन् काले स्थिरीभवति
अतः अध्ययनार्थमपि अनुकूलः एष ब्राह्ममुहूर्तारब्धः प्रातःकालः। सम्यक् मलानुलोमनं,
अभ्यङ्गः, व्यायामः, प्राणायामः, ध्यानम्, अध्ययनम् एते सर्वे एव परमारोग्यकराः भावाः
सन्ति। अतः आरोग्यप्राप्यर्थं सर्वैः एव ब्राह्मे मुहूर्ते उत्थानं कर्तव्यमिति शम्।
Brahma
and brāhma muhūrta.
Brahma
is knowledge. Brahma (and not brahmā) is supreme power of this universe in
terms of knowledge. Thus “ayurvedbrahm” is the blog dedicated
to society for giving some knowledge about ayurveda as an ideal life style. In
day time there is a specific period which is very much useful for gaining
knowledge and study and that time period is termed as brāhma muhūrta. In night
time there are 15 parts termed as muhūrta, each containing 48 minutes. Brāhma
is second last muhūrta of night i.e. second last 48 minute part. As as example
if sun rise is on 6:00 o’clock, then leaving last 48 minutes that is from 05:12
to 06:00, second last 48 minutes i.e. from 04: 24 to 05:12 are termed as brāhma
muhūrta. One should awake in this period (brāhma muhūrta) every day. Why should
one wake up in this period ? answer is for health, prosperity, study and even
for emancipation. Here we are discussing about health, as the subject of this
blog i.e. knowledge of health through āyurveda. Vāta doṣa is one of the three
controlling powers of body of living beings. Among the main functions of vāta
dośa, anulomana i.e. allowing fecal matter to evacuate the bowel is important
one. The urge of feces is generated and controlled by vāta doṣa. Vāta doṣa is
most active in two periods in a day called as vāta kala. These are last yāma of
day and night. Yāma is period of 3 hours . Each yāma contains 3.75 muhūrtāḥ (muhūrtāḥ
is plural of muhūrta). So last yāma of
night includes brāhma muhūrta, in which vāta is more predominant. So if one
wakes up in this period then only vāta doṣa allows its complete evacuation of
feces, disturbance in which vitiates agni i.e. digestion which in turn causes all
the diseases. Abhyaṅga which is broadly
termed as massage, pacifies vāta doṣa and should be performed in brāhma muūrta
only. Vyāyam (exercise) requires lightness and capacity to have full access to
all movements. Both being controlled by vāta doṣa, one should exercise during
early morning i.e. vāta kāla. Mind remains very stable and quite not being
introduced to its subjects during this period. So this period is also ideal for
meditation, prāṇāyāma and study. Health is dependent on all these things right
from evacuation of feces to prāṇāyāma. So one must awake early in the morning
in brāmha muhūrta i.e. second last 48 minutes of night.
ब्रह्म एवं ब्राह्म मुहूर्त
ब्रह्म अर्थात्
ज्ञान। सर्वज्ञानरूपी ब्रह्म ही इस विश्व की सर्वोच्च शक्ति है। आयुर्वेदब्रह्म यह
ब्लॉग आयुर्वेद शास्त्र के माध्यम से एक आदर्श जीवनशैली कैसे बनाए इसका मार्गदर्शन
कराता है। ज्ञान पाने के लिए अध्ययन करने का जो दिन का समय है उसे ब्राह्म मुहूर्त
कहते है। इस ब्लॉग की प्रथम चर्चा इस ब्राह्म मुहूर्त को समर्पित है। रात्रि के उपान्त्य
मुहूर्त को ब्राह्म मुहूर्त कहते है। उपान्त्य याने अखिरी छोडकर उससे पहला। एक रात्रि
मे 15 मुहूर्त हुआ करते हैं। एक एक मुहूर्त 48 मिनट का होता है। उदाहरण के लिए यदि
6 बजे सूर्योदय होता है, तब अखिरी 48 मिनट याने 05: 12 से 06: 00 तक का समय छोडकर उससे
पहले वाले जो 48 मिनट है याने 04: 24 से 05:12 तक इस काल को ब्राह्म मुहूर्त कहते है।
अतः मनुष्य को चाहिए कि वो ब्राह्म मुहूर्त मे निद्रा त्यागकर शय्या से उठे। ब्राह्म
मुहूर्त मे जागृत होने से कई लाभ मिलते हैं। जैसे आरोग्य, संपन्नता, ऐश्वर्य , ज्ञान
एवं मोक्ष भी। प्रकृत ब्लॉग का अधिकरण ‘आरोग्य’ होने से इसी के विषयमे किञ्चित् प्रकाश
डालते है। वात, पित्त एवं कफ ये तीन शक्तियाँ मनुष्य शरीरके सभी क्रियाकलाप नियन्त्रित
करती हैं। इनको दोष कहा जाता है। वात दोष दिन मे दो समयोंमे अधिक बलवान होता है। एक
तो दिवसके अन्तिम याम मे और दूसरा रात्रिके अन्तिम याम मे। 3 घण्टेका एक याम होता है।
एक याम मे 3.75 मुहूर्त होते हैं। सो रात्रि के अन्तिम याममे जिसमे ब्राह्ममुहूर्त
भी संमिलित है, वात दोष का आधिक्य रहता है। मलत्याग के लिए जो वेग आवश्यक होता है उसे
नियन्त्रित करना वात दोष का कार्य है। अतः ब्राह्म मुहूर्त मे उठने से वात के बलवान्
होने के कारण मलत्याग पूर्ण रूप से हो पाता है। इसके ठीक विपरीत यह समय बीत जाने पर
कफ दोष का समय प्रारम्भ होता है जिसमे पूर्णरूप से यह क्रिया नही हो पाती, जिस के कारण
अग्नि की दुष्टि हो जाने से मानो आप समस्त व्याधियोंको आमन्त्रण ही देते है। अभ्यङ्ग
जिसे आधुनिक काल में लोग मसाज नाम से जानते हैं, के लिए भी यह समय अधिक उपयुक्त है।
कारण यह है कि सर्वोच्च बलवान समय की अवस्था मे वात का दमन किया तो वह फिर दिनभर प्रकुपित होने की संभावना नही के बराबर रहती है।
अभ्यङ्ग वात दोष को नियत्न्रित करने की एक अच्छी विधि है। व्यायाम करने के लिए शरीर
मे हल्कापन एवं चञ्चलता चाहिए, ये दोनो वातदोष के अधिकारमे आते हैं, अतः ब्राह्म मुहूर्त
से लेकर जो प्रातः काल है उसीमे मलत्यागजनित एवं वातजनित हल्कापन एवं चञ्चलता होने
से व्यायाम उचित है। प्राण वायू को नियन्त्रित करके जो प्राणायाम किए जाते हैं वे भी
इसी काल मे करने योग्य होते हैं। स्नान, ध्यान एवं अध्ययनके लिए यही काल योग्य हैं।
क्यूंकी मन की स्थिरता इनमे आवश्यक होती हैं, और निद्राकालमे विषयों से दूर रहने के
कारण यह समय मन को स्थिर करता है। सारतः मनुष्यको चाहिए कि वह रात्रिके उपान्त्य मुहूर्त
में अर्थात् ब्राह्मकाल मे जागृत हो एवं आरोग्य से लाभान्वित हो।