http://ayurvedbrahm.blogspot.in/ Ayurvedbrahm : The Science of living beings.: Sharad : October heat - 1

Wednesday, 28 September 2016

Sharad : October heat - 1



शरद् –ऋतुः -

            आश्विनकार्तिकौ मासौ मिलित्वा शरदृतुः वर्तते। आधुनिकयोः सप्तेम्बर-अक्तूबरमासयोः शरदृतुरायाति। शरदि वातावरणे सूर्योष्मा संतापयति दिने, चन्द्रांशवश्च शीतीकुर्वन्ति रात्रौ।  शरदः प्राक् वर्षाकालः समभवत्। तस्मिन् वर्षर्तौ जलं धान्यं चापि निसर्गतः एव अम्लविपाकात्मकं भवति। तस्माच्च वर्षायां पित्तस्य सञ्चयः प्रारभते। शरदि तत् वर्षासञ्चितं पित्तं सूर्योष्मणा पुनः वर्धते प्रकुप्यति च।  तस्मात् अस्मिन् काले पित्तव्याधयः नरान् तापयन्ति। रक्तदुष्टिश्चापि भवति। कण्डूयुताः त्वग्विकाराश्चापि वर्धन्ते। संक्षेपेण अम्लपित्तं, पित्तज्वरः, शीतपित्तं, कोठः, मुखपाकः,  शिरःशूलः  तथा च विचर्चिकादयः कुष्ठप्रकाराः अस्मिन्काले वर्धमानाः दरीदृश्यन्ते। सम्प्रति शरद् ऋतुः प्रारब्धः अतः कथं एतैः विकारैः पित्तप्रकोपाच्च मुक्तिं लभाम इति श्वः कथयिष्ये।

Śarad ṛtu (Care during October heat)

            Two months in terms of Indian panchang i.e. āświn and kārtika are considered as śarad tu. We can compare with equivalent September and October. In this period sunrays give much trouble in day time by heating this universe extremely and moon gives some relief by cooling the universe in night. In previous rainy season due to sore water and grains, there is accumulation of extra pitta inside the body. Prior accumulated pitta vitiates due to sun rays in this śarad tu. Therefore pitta disorders and skin disorders increase in this period due to disturbed pitta and rakta. Acidity, fever, rashes, headache, giddiness, eczemas are generally observed in this period.  Currently śarad tu has been started thus how we could get relief from these disorders, will be published tomorrow.

शरद् ऋतु।

            आश्विन एवं कार्तिक ऋतुओं को मिलाकर शरद ऋतु होती है। सप्टेंबर एवं अक्टूबर मे अधुना हम शरद् मानते है। इस कालमें दिन मे सूर्यकिरणों से मानो धरती तापती रहती है एवं रात्रिमें चन्द्रमा के शीतल किरणोंसे धरती को राहत मिलती है। स्वभावसेही इस समयमें पित्त विकार बढ जाते हैं। रक्त खराब उत्पन्न होने लगता है। खुजली एवं स्राव वाले त्वचा के विकार भी पर्याप्त मात्रामें बढने लगते हैं।  संक्षेप मे अम्लपित्त, शीतपित्त, फुन्सियाँ , मुह के छाले, सिरदर्द, तथा एग्झीमा जैसे त्वचाविकार भी प्रायः देखने को मिलते हैं। संप्रति काल में शरद् ऋतु ही चल रहा है। तो आइए देखे कि पित्त को नियन्त्रित करके  कैसे शरीर की रक्षा पित्तके रोगेसे की जाए, जिसपर कल प्रकाश डाला जाएगा.


No comments:

Post a Comment